“यूरो वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में ध्यान आकर्षित करने की कोशिश में है।”
यूरोपीय मुद्रा ने एक बार फिर से ताक़त हासिल कर ली है और अब वह वैश्विक बाजारों में डॉलर की बादशाहत को चुनौती दे रही है। जर्मन अख़बार Handelsblatt के अनुसार, यूरो के पास अब अमेरिकी डॉलर का वास्तविक विकल्प बनने का सुनहरा मौका है। क्या यह एकल मुद्रा के लिए स्वर्णिम अवसर साबित हो सकता है?
विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका ने डॉलर की वैश्विक प्रधानता बनाए रखने की कोशिशों में कुछ ज़्यादा ही खेल दिखाया, जिससे अनजाने में यूरो को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया। Handelsblatt ज़ोर देकर कहता है कि अब यूरो के पास डॉलर का वास्तविक विकल्प बनने का मौका है।
अख़बार याद दिलाता है कि जब यूरो को पेश किया गया था, तब यह उम्मीद थी कि यह नई मुद्रा यूरोप की डॉलर पर निर्भरता को कम करेगी और उसकी मौद्रिक नीति को अधिक स्वतंत्रता देगी। कई लोगों का मानना था कि यह एकल मुद्रा अंततः डॉलर की जगह ले लेगी और एक बहुध्रुवीय वैश्विक मुद्रा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करेगी। हालांकि, वह सपना कभी पूरा नहीं हुआ। आज भी Handelsblatt के अनुसार, यूरो वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अपेक्षाकृत मामूली भूमिका निभा रहा है।
फिलहाल, आशा की एक नई लहर यूरो की संभावनाओं को ऊपर उठा रही है। यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को अभूतपूर्व रूप से फ्रीज़ करने जैसे घटनाक्रमों से डॉलर की व्यापक कमजोरी सामने आई है, जिससे कुछ निवेशक अब डॉलर से दूर हो रहे हैं। इसी बीच अमेरिका में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता ने कई लोगों को अमेरिकी पूंजी बाज़ारों से दूर कर दिया है। इसके साथ ही, अमेरिकी सरकार यह संकेत दे रही है कि अब वह विदेशी पूंजी पर उतनी निर्भर नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि वॉशिंगटन अब डॉलर का अवमूल्यन करने की रणनीति अपना रहा है और विदेशी निवेशकों की आय पर विशेष कर लगाने की ज़मीन तैयार कर रहा है। इस माहौल में, बाज़ार के प्रतिभागी अब डॉलर के विकल्प और नए रिटर्न स्रोतों की तलाश में हैं।
फिर भी, यूरो को वैश्विक आरक्षित मुद्रा की असली हैसियत हासिल करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना होगा। इसके लिए ब्रुसेल्स को अपने व्यापारिक साझेदारों को डॉलर के बजाय यूरो में लेन-देन करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना होगा। एक और बड़ी चुनौती है यूरोप की गिरती आर्थिक ताक़त। पिछले 20 वर्षों में इस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता घटी है, जबकि यूरो की स्थिति को मज़बूत करने के लिए ठोस विकास जरूरी है।
हाल ही में यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी यह स्वीकार किया कि यूरो अब दुनिया की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण आरक्षित संपत्ति नहीं रहा। उसकी जगह अब सोने ने ले ली है।