अमेरिका–यूरोपीय संघ (EU) के बीच ट्रेड डील एक सकारात्मक कदम है, जिसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच बड़े घटनाक्रम सामने आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस अहम ट्रेड समझौते को नजरअंदाज नहीं कर सके जो दोनों पक्षों के बीच हुआ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह एक ऐतिहासिक ट्रेड डील है। वाकई में बड़ी घोषणा! लेकिन इस डील को इतना महत्वपूर्ण क्या बनाता है? दरअसल, इस समझौते के तहत EU से अमेरिका में आने वाले सामानों पर 15% टैरिफ लगाया जाएगा।
विश्लेषकों के अनुसार, इस समझौते के तहत यूरोपीय संघ अमेरिकी ऊर्जा संसाधनों और सैन्य उपकरणों की भारी मात्रा में खरीद करेगा, साथ ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर निवेश भी करेगा। हालांकि, सवाल यह है — क्या यूरोप इतना बड़ा आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है?
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि EU नेताओं ने अमेरिका से 750 अरब डॉलर मूल्य की ऊर्जा खरीदने का वादा किया है। इसके अलावा, यूरो ज़ोन के देशों ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर के निवेश पर सहमति जताई है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि यूरोपीय नेताओं ने अपने बाज़ारों को बिना टैरिफ के ट्रेड के लिए खोलने की इच्छा ज़ाहिर की है।
बाद में, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने पुष्टि की कि इस समझौते में सभी क्षेत्रों पर 15% टैरिफ शामिल हैं। यह कदम दोनों आर्थिक शक्तियों के बीच ट्रेड संबंधों में संतुलन बहाल करने की दिशा में देखा जा रहा है।
इस विकास ने बाज़ार में फैली चिंताओं को कुछ हद तक शांत किया, जो ट्रंप की व्यापक टैरिफ योजनाओं की घोषणा के बाद बढ़ गई थीं। EU देशों को 30% तक की ड्यूटी का सामना करना पड़ सकता था, लेकिन वह स्थिति टल गई। हालांकि, एक अहम मुद्दा अब भी अनसुलझा है — दवाओं पर लगने वाले टैरिफ। पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने EU से आयातित दवाओं पर 200% तक टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। अगर यह नीति लागू होती है, तो यह यूरोप की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।
फिलहाल, यह खतरा टलता हुआ दिख रहा है, हालांकि कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। वॉशिंगटन और ब्रसेल्स दोनों ही दवाओं पर टैरिफ की वर्तमान स्थिति को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। उम्मीद की जा रही है कि यह मसला शांतिपूर्ण ढंग से और दोनों पक्षों के हित में सुलझा लिया जाएगा।