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अगर भारत अमेरिकी दबाव में आकर रूसी तेल छोड़ता है, तो उसे अरबों का नुकसान झेलना पड़ सकता है।

अगर भारत अमेरिकी दबाव में आकर रूसी तेल छोड़ता है, तो उसे अरबों का नुकसान झेलना पड़ सकता है।

भारतीय अधिकारियों के सामने एक कठिन फैसला है। एक ओर, अमेरिका की रूसी तेल की खरीद पर प्रतिबंध लगाने की धमकियों को नजरअंदाज करना कोई विकल्प नहीं है। दूसरी ओर, ऐसा कोई कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका दे सकता है। इस समय भारत एक ऐसी स्थिति में फंस गया है, जहां कोई भी रास्ता आसान नहीं है।

Kpler के विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर भारत वाशिंगटन के दबाव में आकर रूस से कच्चे तेल का आयात रोकता है, तो उसे कई अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।

फिलहाल, भारत की कच्चे तेल की मांग का लगभग 40% हिस्सा रूसी आपूर्तिकर्ता पूरा करते हैं। हालांकि, अगर नई दिल्ली अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मांग मानते हुए रूसी ऊर्जा की खरीद बंद कर देता है, तो हाइड्रोकार्बन के आयात पर भारत का खर्च 9 से 11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने से वैश्विक तेल कीमतों में तेज़ उछाल आ सकता है। Kpler के अनुसार, इससे भारत को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इससे पहले, भारतीय अधिकारियों ने अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानदंडों के पालन का हवाला देते हुए रूसी हाइड्रोकार्बन की खरीद के लिए देश की प्रतिबद्धता को दोहराया था। नई दिल्ली ने कहा था कि ये खरीद "वैश्विक ऊर्जा स्थिरता में सकारात्मक योगदान दे रही है।"

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