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अमेरिकी दबाव के बावजूद चीन रूसी तेल पर अडिग है।

अमेरिकी दबाव के बावजूद चीन रूसी तेल पर अडिग है।

बीजिंग का रूख साफ है—वह अमेरिकी धमकियों के आगे झुकने या रूसी तेल की खरीद को रोकने का कोई इरादा नहीं रखता। वॉशिंगटन से बढ़ते दबाव के बावजूद, चीनी अधिकारी अपनी मौजूदा नीति पर कायम रहने की योजना बना रहे हैं। रॉयटर्स के अनुसार, चीन अपनी ऊर्जा नीति को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के अनुरूप बदलने के पक्ष में नहीं है।

पिछले सप्ताह, अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने चीनी अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने रूसी कच्चे तेल का आयात जारी रखा, तो ट्रंप की नई समयसीमा समाप्त होने के बाद उन पर भारी टैरिफ लगाए जा सकते हैं। इसके जवाब में बीजिंग ने वॉशिंगटन को याद दिलाया कि चीन एक संप्रभु राष्ट्र है और ऊर्जा आपूर्ति से संबंधित फैसले देश के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिए जाते हैं।

बेसेंट ने कहा, "चीन अपनी संप्रभुता को बहुत गंभीरता से लेता है। हम उनकी संप्रभुता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, इसलिए वे 100% टैरिफ देना पसंद करेंगे।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन अब भी रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है।

दो दिनों की अमेरिका-चीन ट्रेड वार्ता के बाद, बेसेंट ने ईरानी तेल की चीन द्वारा लंबे समय से की जा रही खरीद पर भी असंतोष जताया। उप-प्रधानमंत्री हे लीफेंग के साथ अपनी बैठक में उन्होंने यह भी कहा कि रूस को भेजे जा रहे डुअल-यूज़ (सैन्य व नागरिक दोनों में उपयोगी) सामान की सप्लाई यूरोप के साथ अमेरिका के व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करने की कोशिशों को कमजोर कर सकती है।

इससे पहले, चीनी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी धमकियों पर संयमित प्रतिक्रिया दी थी। वॉशिंगटन ने बीजिंग से रूसी कच्चे तेल का आयात रोकने का आग्रह किया था और चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो "भारी टैरिफ" लगाए जाएंगे। हालांकि, इन चेतावनियों का चीन पर कोई विशेष असर नहीं पड़ा। मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने दोहराया कि चीन की ऊर्जा सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और यह भी कहा कि "टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता।" वाइट हाउस द्वारा भड़काए जा रहे बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच चीनी अधिकारी लगातार यही संदेश दोहरा रहे हैं।

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